MA Semester-1 Sociology paper-II - Perspectives on Indian Society - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2682
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

प्रश्न- ग्रामीण-नगरीय सातव्य की अवधारणा की संक्षेप में विवेचना कीजिये।

उत्तर -

ग्रामीण नगरीय सातव्य

ग्रामीण तथा नगरीय समुदाय के विभिन्न भेदों को देखते हुए आज एक नवीन अवधारणा का विकास हुआ है जिसे हम ग्रामीण नगरीय सातव्य कहते हैं। यह अवधारणा इस महत्वपूर्ण तथ्य से सम्बद्ध है कि ग्रामीण नगरीय भिन्नताएँ एक-दूसरे से पूर्णतया भिन्न रूप से विकसित होती हैं। अथवा यह भिन्नताएँ सापेक्षिक हैं और दोनों समुदायों को एक-दूसरे से जोड़ती है। आरम्भ में डेवी, बैनेट तथा हॉजर ने इस अवधारणा के द्वारा यह स्पष्ट किया है कि ग्रामीण नगरीय सातव्य एक ऐसी विचारधारा है जो ग्रामीण समाज को नगरीय समाज से पृथक् करके अध्ययन करने पर बल देती है। अनेक दूसरे विद्वानों, जैसे- सोरोकिन, जिमरमैन, रेडफील्ड, स्पेन्सर टॉनीज तथा वेबर ने भी इस विचारधारा का समर्थन करते हुए यह स्पष्ट किया है कि अनेक आधारों पर नगरीय समुदाय की प्रकृति ग्रामीण समुदाय से अत्यधिक भिन्न है, अतः दोनों समुदायों का अध्ययन पृथक् रूप से किया जाना चाहिये।

ग्रामीण एवं नगरीय समुदायों को दो प्रमुख समुदाय माना जाता है। इन दोनों में विविध प्रकार से अन्तर किया जाता रहा है। औद्योगिक क्रान्ति से पूर्व ग्रामीण समुदाय नगरीय समुदायों से पूरी तरह से भिन्न ही नहीं थे, अपितु इन दोनों में कोई विशेष सम्पर्क सूत्र अथवा अन्तर्क्रियाएँ नहीं पाई जाती थीं। परन्तु जैसे नगरीकरण एवं औद्योगीकरण की प्रक्रियाएँ प्रारम्भ हुई, ग्रामीण एवं नगरीय समुदायों में पारस्परिक सम्पर्क में वृद्धि होती गई तथा दोनों में पाए जाने वाले अन्तर काफी कम होने लगे।

ग्रामीण एवं नगरीय समुदायों में बढ़ती हुई अन्तर्क्रियाओं तथा इनमें किये जाने वाले अन्तर व कठिनाइयों को देखते हुए आज ग्रामीण समाजशास्त्र में एक नवीन अवधारणा का विकास हुआ है, जिसे ग्रामीण नगरीय सातव्य या निरन्तरता कहा जाता है। जब बीसवीं शताब्दी में परिवर्तन की विभिन्न प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप ग्रामीण तथा नगरीय समुदायों में पाए जाने वाले अन्तर केवल सापेक्ष हो गए तो कुछ लोगों ने यह विचार प्रस्तुत किया कि दोनों ही प्रकार के समुदाय आज आपस में जुड़े हुए हैं, तथा इनमें पृथकता के स्थान पर सातव्य या निरन्तरता पायी जाती है। यह अवधारणा इसी वास्तविकता को व्यक्त करने के प्रयासों का परिणाम हैं। डिवे, वेनेट तथा होजर ने अपनी अपनी पुस्तकों में यह विचारधारा प्रस्तुत की कि ग्रामीण नगरीय सातव्य दोनों प्रकार के समुदायों को पृथक् करके अध्ययन पर बल देती है। ग्रामीण समुदायों में विविध प्रकार के विकास कार्यक्रमों, अनेक नवीन संस्थाओं एवं साधनों के प्रवेश, विभिन्न कल्याण सम्बन्धी गतिविधियों, नवीन राजनीतिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप ग्रामवासियों की जीवनशैली पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। इससे परम्परागत ग्रामीण सामाजिक संरचना परिवर्तित हुई है। ग्रामवासियों के नगरीय समुदायों से निरन्तर सम्पर्क के कारण नगरीय विशेषताएँ ग्रामीण समाज में प्रवेश कर गई है। इन सबका परिणाम यह हुआ कि आज ग्रामवासियों की जीवन पद्धति को नगरवासियों की जीवन-पद्धति से अलग करना कठिन हो गया है।

इसके अतिरिक्त, नगरों के निरन्तर विकास से सीमावर्ती ग्रामीण क्षेत्रों का तीव्रता से नगरीकरण हुआ है तथा सामाजिक जीवन में नैटवर्क्स की भूमिका बढ़ गई है। इनसे ग्रामीण एवं नगरीय समुदायों में पाए जाने वाले अन्तर सापेक्ष मात्र हो गये हैं। ग्रामीण तथा नगरीय समुदायों में आज वह निरन्तरता विकसित हुई है जोकि पहले कभी नहीं थी। ग्रामीण नगरीय सातव्य की अवधारणा इसी परिवर्तित वास्तविकता को व्यक्त करती है। बण्ड एवं सहयोगियों के अनुसार, "सातव्य सिद्धान्त के समर्थक यह अहसास कराते हैं कि ग्रामीण एवं नगरीय अन्तर केवल तुलनात्मक अंशों में ही होता है तथा इन दोनों ध्रुवों के बीच एक ऐसी भी श्रृंखला स्पष्ट होती है जो इन्हें एक-दूसरे से जोड़ती हैं।"

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि ग्रामीण नगरीय सातव्य की अवधारणा ग्रामीण एवं नगरीय समुदायों में पाई जाने वाली निरन्तरता से सम्बन्धित है तथा इस बात पर बल देती है कि गाँवों एवं नगरों में पाए जाने वाले अन्तर निरपेक्ष न होकर सोपक्ष एवं केवल मात्र के होते हैं। भारतीय समाज के सन्दर्भ में आज यह अवधारणा पूरी तरह से लागू होती है। अंग्रेजी शासनकाल में प्रारम्भ हुए परिवर्तनों के परिणामस्वरूप ग्रामीण समुदायों का नगरीय समुदायों से सम्पर्क निरन्तर बढ़ा है तथा आज ग्रामीण समुदायों की विशेषताएँ नगरीय समुदायों में तथा नगरीय समुदाय की विशेषताएँ ग्रामीण समुदाय में स्पष्टतः देखी जा सकती हैं। जो ग्रामवासी गाँव छोड़कर नगरों में आकर बस जाते हैं। उनमें से कुछ अपनी ग्रामीण जीवन शैली को नगरों में रहते हुए भी बनाए रखते हैं। इसी प्रकार, बहुत से ग्रामवासी नगरीय समुदायों से इतना अधिक जुड़े हुए है कि वे गाँव में रहते हुए भी नगरवासियों से किसी भी दृष्टि से पीछे नहीं है। वास्तव में परिवर्तन की प्रक्रियाओं ने दोनों समुदायों को परस्पर जोड़ने एवं इनमें निरन्तरता स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- लूई ड्यूमाँ और जी. एस. घुरिये द्वारा प्रतिपादित भारत विद्या आधारित परिप्रेक्ष्य के बीच अन्तर कीजिये।
  2. प्रश्न- भारत में धार्मिक एकीकरण को समझाइये। भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले चार लक्षण बताइये?
  3. प्रश्न- भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले लक्षण बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय संस्कृति के उन पहलुओं की विवेचना कीजिये जो इसमें अभिसरण. एवं एकीकरण लाने में सहायक हैं? प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये?
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  6. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  7. प्रश्न- आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  8. प्रश्न- समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  9. प्रश्न- भारतीय समाज के बाँधने वाले सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- परम्परागत भारतीय समाज के विशिष्ट लक्षण एवं संरूपण क्या हैं?
  11. प्रश्न- विवाह के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- पवित्रता और अपवित्रता के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की चर्चा कीजिये।
  13. प्रश्न- शास्त्रीय दृष्टिकोण का महत्व स्पष्ट कीजिये? क्षेत्राधारित दृष्टिकोण का क्या महत्व है? शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  14. प्रश्न- शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  15. प्रश्न- इण्डोलॉजी से आप क्या समझते हैं? विस्तार से वर्णन कीजिए।.
  16. प्रश्न- भारतीय विद्या अभिगम की सीमाएँ क्या हैं?
  17. प्रश्न- प्रतीकात्मक स्वरूपों के समाजशास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  18. प्रश्न- ग्रामीण-नगरीय सातव्य की अवधारणा की संक्षेप में विवेचना कीजिये।
  19. प्रश्न- विद्या अभिगमन से क्या अभिप्राय है?
  20. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य से आप क्या समझते हैं? सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख 'विशेषतायें बतलाइये? प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये?
  21. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख विशेषतायें बताइये?
  22. प्रश्न- प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- प्रकार्यवाद से आप क्या समझते हैं? प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये?
  24. प्रश्न- प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
  25. प्रश्न- दुर्खीम की प्रकार्यवाद की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये? दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये? मर्टन की प्रकार्यवाद की अवधारणा को समझाइये? प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  26. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये?
  27. प्रश्न- प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  28. प्रश्न- "संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य" को एम. एन. श्रीनिवास के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
  29. प्रश्न- डॉ. एस.सी. दुबे के अनुसार ग्रामीण अध्ययनों में महत्व को दर्शाइए?
  30. प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में एस सी दुबे के विचारों को व्यक्त कीजिए?
  31. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के ग्रामीण अध्ययन की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  32. प्रश्न- एस.सी. दुबे का जीवन चित्रण प्रस्तुत कीजिये व उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  33. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के अनुसार वृहत परम्पराओं का अर्थ स्पष्ट कीजिए?
  34. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे द्वारा रचित परम्पराओं की आलोचनात्मक दृष्टिकोण व्यक्त कीजिए?
  35. प्रश्न- एस. सी. दुबे के शामीर पेट गाँव का परिचय दीजिए?
  36. प्रश्न- संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- बृजराज चौहान (बी. आर. चौहान) के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में बताइए।
  38. प्रश्न- एम. एन श्रीनिवास के जीवन चित्रण को प्रस्तुत कीजिये।
  39. प्रश्न- बी.आर.चौहान की पुस्तक का उल्लेख कीजिए।
  40. प्रश्न- "राणावतों की सादणी" ग्राम का परिचय दीजिये।
  41. प्रश्न- बृज राज चौहान का जीवन परिचय, योगदान ओर कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  42. प्रश्न- मार्क्स के 'वर्ग संघर्ष' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये? संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  43. प्रश्न- संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  44. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं? मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  45. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  46. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य में क्या योगदान है?
  48. प्रश्न- ए. आर. देसाई द्वारा वर्णित राष्ट्रीय आन्दोलन का मार्क्सवादी स्वरूप स्पष्ट करें।
  49. प्रश्न- डी. पी. मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  50. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- मुकर्जी ने परम्पराओं का विरोध क्यों किया?
  52. प्रश्न- परम्पराओं में कौन-कौन से निहित तत्त्व है?
  53. प्रश्न- परम्पराओं में परस्पर संघर्ष क्यों होता हैं?
  54. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक सांस्कृतिक समन्वय कैसे हुआ?
  55. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या है?
  56. प्रश्न- मार्क्स और हीगल के द्वन्द्ववाद की तुलना कीजिए।
  57. प्रश्न- राधाकमल मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  58. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या हैं?
  59. प्रश्न- रामकृष्ण मुखर्जी के विषय में संक्षेप में बताइए।
  60. प्रश्न- सभ्यता से आप क्या समझते हैं? एन.के. बोस तथा सुरजीत सिन्हा का भारतीय समाज परिप्रेक्ष्य में सभ्यता का वर्णन करें।
  61. प्रश्न- सुरजीत सिन्हा का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृतियाँ बताइये।
  62. प्रश्न- एन. के. बोस का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृत्तियाँ बताइये।
  63. प्रश्न- सभ्यतावादी परिप्रेक्ष्य में एन०के० बोस के विचारों का विवेचन कीजिए।
  64. प्रश्न- सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  65. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- भारतीय समाज को समझने में बी आर अम्बेडकर के "सबआल्टर्न" परिप्रेक्ष्य की विवेचना कीजिये।
  67. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किये गये धार्मिक कार्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  68. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किए गए शैक्षिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  69. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : (1) दलितों की आर्थिक स्थिति (2) दलितों की राजनैतिक स्थिति (3) दलितों की संवैधानिक स्थिति।
  70. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर का जीवन परिचय दीजिये।
  71. प्रश्न- डॉ. अम्बेडर की दलितोद्धार के प्रति यथार्थवाद दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के वैचारिक स्वरूप एवं पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के माध्यम से अध्ययन किए गए देवी आन्दोलन का स्वरूप स्पष्ट करें।
  74. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य से अपने अध्ययन का विषय बनाये गए देवी 'आन्दोलन के परिणामों पर प्रकाश डालें।
  75. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन के दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
  76. प्रश्न- अम्बेडकर के सामाजिक चिन्तन के मुख्य विषय को समझाइये।
  77. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के विचारों एवं कार्यों का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।

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